माता-पिता - धरती पर ईश्वर का रूप
Hindi Kavita on Parents
माता-पिता - धरती पर ईश्वर का रूप
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मेरे माता पिता
प्रणाम।
माता-पिता के वात्सल्य को शब्दों में कौन पिरो सका है। कौन माता-पिता के त्याग एवं संघर्ष को दस्तावेजों में संभाल सका है। अपने बच्चों के लिए ताउम्र बहाये गए आपके पसीनों की बूंदों को कौन कागजों पर उतार सका है। कौन वृद्धावस्था में अकेलेपन से जूझते हुए आपकी वेदनाओं को लेखनी में बाँध सका है। एवं कौन आपकी महत्ता को उपमाओं से इंगित कर सका है। धरा पर ईश्वर के प्रतिरूप माता-पिता, सुखद एहसास माता-पिता, हमारे व्यक्तित्व के सूत्रधार माता-पिता। जिन्होंने हमें इस संसार से परिचय का सौभाग्य दिया। माँ आपको आपने गर्भ में स्थान देती है तो पिता अपने जीवन में। दोनों ही संस्कारों की दुर्लभ पाठशाला हैं।
पिता सघन वटवृक्ष हैं जिनके शीतल छाँव में हम चिलचिलाती धूप रुपी कष्टों से अनभिज्ञ रहते हैं जबकि वे स्वयं को उस धूप में जलाते हैं। यकीनन माँ इस वटवृक्ष की शीतल छाँव जिसकी छाया पड़ते ही सारी चिंताएं एवं बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। बाल्यकाल में हमारे अश्रु के मोतियों को माँ अपने आँचल में छुपा लेती थी। पिता के जिम्मेदारीयुक्त काँधे हमें गली-मोहल्लों से रूबरू कराते थे। कदाचित ही कभी आपने पिता के पैरों के छाले देखें हो, कभी आपकी दृष्टि माँ के फ़टे हुए पल्लू पर गई हो। उन्होंने हमारे लिए जो जीवनपर्यन्त कष्ट सहे हैं उनको कभी अपनी स्मृति से धूमिल मत करियेगा। रोम-रोम में माता-पिता का निश्छल प्रेम बहता है। आपको भी इसका एहसास अवश्य होगा, बस इंतजार करिये पिता या माँ बनने का।
हमारे भविष्य के सुनहरे सपनों की भाग-दौड़ में उनके चेहरे पर कब झुर्रियों ने कब्जा कर लिया, पता ही नहीं चला। तब तक हम उन सपनों को जीने में इतना मशगूल हो गए कि उन झुर्रिओं को अनदेखा करने लगे। थोड़ा-बहुत पढ़-लिखकर हम आधुनिक होने लगे हैं और गाँव में रहने वाले माता-पिता को पुरातन विचारों का कहने लगे है। यही ऐसा है तो यकीनन आपसे बड़ा अक्षम्य मूर्ख कोई नहीं। क्योकि वही पुरातन विचार आपके व्यक्तित्व में संस्कार बनकर दिखते हैं। इस आडंबर काल से बाहर निकलो, उनका आदर करो नहीं तो परमेश्वर भी माफ़ नहीं करेगा। याद रखिये कि हम उनसे हैं, न की वो हमसे।
साक्षात ब्रम्ह यही हैं और इनकी चरण रज प्रसाद के समान है। आज हमारी जो भी किंचित उपलब्धियां है वह स्वयं के श्रम से बाद में पहले उनके शुभाशीष से हैं। हम अपने सपनों का पीछा करते-करते शायद उनसे बहुत दूर निकल गए हैं, वास्तव में हम नहीं जानते कि आपके सपनों के लिए उन्होंने कितने त्याग किये हैं। हमारा जीवन उनके बलिदानों का कर्जदार है और हमेशा रहेगा। स्वयं की जिस अथाह सम्पदा पर आपको अहंकार है वो उनके लिए राख के ढेर की तरह है। उनके लिए तो उनके बच्चे ही द्रव्य हैं। वो आर्थिक निर्धन व्यक्ति आपसे बेहद धनीं है जो अपने माता-पिता के चरणों में समर्पित है। क्योकि वो सिर्फ वित्त रहित है पर आप संवेदना रहित।
प्रभु से प्रार्थना है कि सर्वजन के मस्तक पर दोनों का आशीष बनाये रखे।
जीवन का उद्देश्य माता पिता की ख़ुशी से बेहतर कुछ नही हो सकता।
माता-पिता - धरती पर ईश्वर का रूप
Hindi Poetry on Parents
मेरे माता पिता
धन्य-धन्य वह देवदूत हैं,
हमें संस्कार जो बांच रहे।
मात-पिता तो परब्रम्ह हैं,
जो हमको हैं पाल रहे।
सेवा कर ले रे मानुष,
गर तुझे मोक्ष को पाना है।
परमेश्वर और कहीं ना भ्राता,
इनके चरणों में स्वर्ग रहे।
जो कर्ज हैं इनके हम सब पर,
ना उबर सकें सौ जन्मों में,
खुद रहकर भारी कष्टों में,
दे हमें सुखों का दान रहे।
क्यों ढूंढें ईश्वर-अल्लाह को,
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में।
यह सब तो हैं इसी धरा पर,
बन मातृ-पितृ के रूप रहें।
हे ईश्वर तेरा साथ रहे,
इनके सपनों को करने में।
मेरा सपना बस इतना सा,
सर पर दोनों का हाथ रहे।
सचिन 'निडर'
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