बाढ़ पर हिंदी कविता
बाढ़ आती है तो अपने साथ मंजर लाती है तबाही के, बर्बादी के और बहा ले जाती है अपने साथ किसानों के सपनों को, लोगों के आशियानों को एवं खुद इंसानों को। और बाढ़ जाती है तो भ्रष्टाचारों से ग्रसित व्यवस्थाओं को आइना दिखाकर, अव्यवस्थाओं की सारी कारीगरी को उजागर कर जाती है। एक बारिश ही काफी है झूठे दावों की पोल खोलने के लिए।
प्रत्येक वर्ष बारिश होती है, बाढ़ भी आती है और यह निश्चित है परन्तु इतने वर्षों बाद भी इस से निपटने में सरकार अक्षम ही हैं। यद्पि हम जानते है यह सब प्राकृतिक है हमारा इन पर कोई नियंत्रण नहीं। और इनसे निबटने के लिए जितनी भी व्यवस्थाएं है या जो कार्य हो रहें हैं वो कहीं न कहीं अभी तक अधूरे ही हैं। क्योकि यदि ऐसा नहीं होता तो जिन किसानों की फसलें बर्बाद होती हैं, गरीबों के घर बहते हैं, जान-माल का नुकसान होता है आदि से बचाव की उम्मीदें की जा सकती थी। क्योकि आखिर भुगतना तो गरीब को ही है, अमीर को फर्क कहाँ पड़ने वाला।
तनिक विचारिये उस किसान के बारे में जिसकी मेहनत के पसीने से उपजाई फसल जिससे उसकी उम्मीदें बंधी थी, वो बाढ़ की त्रासदी का शिकार हो जाये। वो मजदूर जिसकी झोपडी बाढ़ की बलि चढ़ गई हो, वो पशुपालक जिसके पशु बाढ़ की विभीषिका की भेट चढ़ गए हो, गरीब का बच्चा बाढ़ ने लील लिया हो। क्या हम उनके दर्द, दुःख का जरा सा भी अनुभव कर सकते हैं। गावों में तो हलकी बारिश में भी गलियां कीचड़ों में तब्दील हो जातीं हैं। जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, जीना दूभर हो जाता है।
पिछले दिनों में पूरे देश ने प्रलयंकारी बाढ़ का रौद्र रूप देखा है, भोगा है। बाढ़ का कहर देखना हो तो शहर से कभी महलों से निकल कर झोपड़ों की तरफ रूख करियेगा। केवल खबरिया चैनलों के सामने बैठकर अफ़सोस मत जाहिर करिये।
बाढ़ पर हिंदी कविता
डूब गए अरमान, बाढ़ के पानी में,
निकल रही है आह, गरीब किसानी में।
जलमग्न हुए घर द्वार, दिखे न आज,
कोई सरकार, गाँव-गलियारी में।
निकल रही है आह गरीब किसानी में।।
अब न जाएँ हैं रोज, काफिले गावों में,
जबसे भरी है बाढ़, खेत-खलिहानों में,
दुखित हुए नर-नार, जा रहा आज,
देश की शान, वो गाँव कटानों में।
निकल रही है आह......................
जो न मिले सन्देश कवि के श्री मुख से,
कविता कहे अनेक सुनोगे क्या कर के,
कर के झूठी बात, किया है घात,
गरीब के साथ, वोट मांगने वालों ने।
निकल रही है आह......................
गुजर न जाए वक्त यह पुण्य कमाने में,
हो जाओ 'निडर' के साथ मदद करवाने में,
देखो कैसे बहें जज्बात, धार के साथ,
हाथ के हाथ, पास के नालों में।
निकल रही है आह......................
सचिन 'निडर'
4 Comments
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