मैं जानता हूं कि मैं कौन हूँ?



         मैं जानता हूं कि मैं कौन हूँ? 
         I know Who am i...




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मैं जानता हूं कि मैं कौन हूँ?
I know Who am i...

        

प्रणाम,


मैं जानता हूँ कि मैं कौन हूँ, ऐसा कहना, लिखना सरल है किन्तु ऐसा होना बेहद जटिल। स्वयं को जानना कि मैं कौन हूँ, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, यह विरले ही जान पाते हैं। और जिसने जान लिया समझिये उसने संसार  जीत लिया, उसका जीवन सफल हो गया। इसका एक जुड़ाव आध्यात्मिक हो सकता है एवं एक वैज्ञानिक। किन्तु जीवन में कुछ भी बड़ा करने के लिए, बड़ा व्यक्तित्व बनने के लिए स्वयं को जानना नितांत आवश्यक है। 


एक कटु सत्य यह भी है कि जीवन पर्यन्त हम केवल स्वयं को ही नहीं जान पाते हैं, स्वयं को ही नहीं समझ पाते हैं। हम सभी को यह प्रयास करना चाहिए कि कम से कम हमें यह अवश्य ज्ञात होना चाहिए कि हमें यात्रा आरम्भ कैसे करनी है और कहाँ पहुंचना है और गंतव्य तक कैसे पहुंचना है। बिना किसी लक्ष्य निर्धारित किये जीवन का कोई मतलब ही नहीं है। 


अतएव आग्रह है कि अपनी कुछ ऊर्जा, कुछ समय स्वयं को जानने, समझने के लिए अवश्य लगाए। एकबार आपको खुद के बारे में पता लग गया कि आप क्या करना चाहते है, आपका लक्ष्य क्या है, आप जीवन से चाहते क्या है, आपकी यात्रा का पड़ाव कहाँ है आदि, तो खुद के लिए जीवन बेहद आसान एवं शांतिप्रिय हो जाता है। प्रत्येक तरह से स्वयं को जानना ही इस जीवन का सार है। 



       मैं कौन हूं  - हिंदी कविता 



हैं प्रश्न कितने, क्यों सहूँ।
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ। 

 

बेकल हृदय का नीर हूँ,
एक जीव मैं बेपीर हूँ,
मैं सुरमई सी शाम हूँ,
मिट्टी में मिलती राख हूँ,
मैं बस धरा पर ही रहूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।  

 

निस्तेज हूँ निष्प्राण हूँ,
मैं एक अलग सा साज हूँ,
न राग हूँ न द्वेष हूँ,
निष्पक्ष एक विचार हूँ,
फिर क्या दिखूँ और क्या बनूं,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

तूफान के सैलाब पर,
लिखा हूँ कोई तार पर,
सवाल हूँ कि जबाब हूँ,
मैं हिन्द का ही लाल हूँ,
तू बता क्या-क्या कहूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

अविरल नदी की धार हूँ,
मैं पतझरों की बरसात हूँ,
राम का बनवास हूँ,
मैं सभ्य सा इंसान हूँ,
फिर क्यों भला उड़ता फिरूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

बेजान हूँ बेनाम हूँ,
बेखौफ हूँ बेदाग हूँ,
मैं हसरतों का एक महल,
हूँ जिंदगी का एक सफर,
हूँ निडर फिर क्यों डरूं,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

तू भेज दुनियां भर के दुख को,
सोच कर भूला हूँ सुख को,
चट्टान सा होकर खड़ा हूँ,
हर हाल में जिद पर अड़ा हूँ,
क्या दर्द कितने और सहूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

है सोच ऊंची चोटियों सी,
बात निश्छल मोतियों सी,
नभ को छूता उत्तुंग शिखर,
फिर करूं क्यों कर फिकर,
और मैं क्या-क्या कहूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

अक्षम्य भूलों में लगा हूँ,
बीच शूलों के पला हूँ,
है खोज खुद की आजकल,
मैं क्यों रुकूँ अब हारकर,
क्यों आंसमा में मैं रहूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

ना मित्र की पहचान है,
ना खुद की ही परवाह है,
ना ही बड़ी सी चाह है,
ना ही मेरी कोई राह है,
अब इस से ज्यादा क्या कहूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

है जिंदगी का फलसफा,
मुझपर है मेरा दबदबा,
जिंदगी एक झूठ है,
जलजलों सी भूख है,
अंगार पर क्यों न चलूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

इस युग का मैं आरम्भ हूँ,
हर कर्म का प्रारब्ध हूँ,
जिम्मेदारियों का बोझ हूँ,
जीवन का आत्मबोध हूँ,
क्यों न कुछ नया करूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

धर्म में मत बांध मुझको,
कर जरा आज़ाद मुझको,
उम्मीद का संसार हूँ,
मैं सभ्य सा इंसान हूँ,
हो अनवरत ही मैं चलूँ,
मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ।

 

          हैं प्रश्न कितने, क्यों सहूँ।

         मैं कौन हूँ, कैसे कहूँ। 

               सचिन 'निडर'





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