आत्मनिर्भर भारत एवं भारतीय राजनीति
गरीब की कलम से..........
जी हम चर्चा कर रहें हैं आत्मनिर्भर भारत एवं भारतीय राजनीति के बारे में। आप आत्मनिर्भर भारत एवं भारतीय राजनीति के विषय पर लिखे इस लेख को एक विश्लेषण समझ सकते हैं। बातें-बातें और केवल बाते। चारों तरफ बस एक ही शोर आत्मनिर्भर भारत। जैसे सिर्फ बातों ही बातों में भारत आत्मनिर्भर बन जायेगा। जैसे चिराग घिसा और आत्मनिर्भर भारत निकल पड़ेगा। जैसे छड़ी घुमाई और भारत के साथ आत्मनिर्भर शब्द उत्पन्न हो गया। सिर्फ कहने भर से या संकल्प कर लेने से कुछ नहीं होने वाला। परन्तु सत्ताएं जानती हैं कि बातों-वादों की जलेबियाँ कैसे बनानी हैं और उसकी चाशनी में मक्खियों को कैसे लपेटना है।
जी हम चर्चा कर रहें हैं आत्मनिर्भर भारत एवं भारतीय राजनीति के बारे में। आप आत्मनिर्भर भारत एवं भारतीय राजनीति के विषय पर लिखे इस लेख को एक विश्लेषण समझ सकते हैं। बातें-बातें और केवल बाते। चारों तरफ बस एक ही शोर आत्मनिर्भर भारत। जैसे सिर्फ बातों ही बातों में भारत आत्मनिर्भर बन जायेगा। जैसे चिराग घिसा और आत्मनिर्भर भारत निकल पड़ेगा। जैसे छड़ी घुमाई और भारत के साथ आत्मनिर्भर शब्द उत्पन्न हो गया। सिर्फ कहने भर से या संकल्प कर लेने से कुछ नहीं होने वाला। परन्तु सत्ताएं जानती हैं कि बातों-वादों की जलेबियाँ कैसे बनानी हैं और उसकी चाशनी में मक्खियों को कैसे लपेटना है।
हमें लगता है कि देश के प्रधानमंत्री कह रहें हैं तो हमें भी स्वदेशी अपनाना चाहिए। बिलकुल, मै भी स्वदेशी के पक्ष में हूँ और हर हिंदुस्तानी भी इसके पक्ष में होगा ही। विदेशी उत्पादों का बहिष्कार एवं स्वदेशी से प्यार। यह आजादी से पहले ही प्रारम्भ हो गया था पर हो आज तक नहीं पाया। अब प्रश्न यह उठता है की शुरुआत हमसे ही क्यों? क्यों हमेशा जनता ही देश प्रेम साबित करतें फिरें या स्वदेशी अपनाना प्रारम्भ करे, माननीय क्यों नहीं?
कभी ये शुरुआत आपसे भी तो हो सकती है। क्यों नहीं आप विदेशी गाड़ियों, विदेशी मोबाइलों, विदेशी शिक्षा आदि का मोह नहीं छोड़ पाते हैं। क्यों आप अपने घर को विदेशी पत्थरों से सजाते हैं, क्यों आपके बच्चे देश में नहीं पढ़ पाते हैं। क्यों आपके बच्चे सेना में भर्ती नहीं होते हैं। आपकी तो दैनिक उपयोग की वस्तुओं में न जाने कितनी चीजें विदेशी भरी पड़ी हैं।
लेकिन न, स्वदेशी तो सिर्फ हमें अपनाना है आपको थोड़े न। मैं व्यवसायी बाबा जी वाले स्वदेशी की बात बिलकुल भी नहीं कर रहा हूँ क्योकि हम उनका स्वदेशी अपनाते हैं और स्वयं विदेशी गाड़ियां एवं अन्य वस्तुएं इस्तेमाल करते हैं। और विदेशी उत्पादों का हम ही प्रयोग क्यों बंद करे, आप विदेशी उत्पादों का भारत में आयात ही बंद कर दीजिये। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। पर ऐसा नहीं किया जा सकता क्योकि व्यापारिक रिश्ते और आर्थिक स्थिति सँभालनी है न। तो फिर ये विदेशी उत्पाद का बहिष्कार क्या दिखावा नहीं? फिर आप ही विदेशी कंपनियों को आमंत्रित करेंगे की भारत में आकर अपना व्यापर करे या उत्पादों को बनायें।
क्यों भई, आप अपनी प्रणाली आसान क्यों नहीं बनाते कि व्यापार करना हम लोगों के लिए आसान हो। ताकि भारत में ही उत्पाद बनाकर हम भी अपना छोटा सा योगदान आत्मनिर्भर भारत को बनाने में दे सकें। परन्तु व्यापार प्रारम्भ करने के प्रक्रियाएं ऐसी है कि व्यक्ति डर जाये। एक छोटी से फर्म खोलने के लिए भी इतने स्टेप हैं कि व्यक्ति का व्यापार करने का माद्दा ही खत्म हो जाए।
जिस हिसाब से टैक्स लिया जाता है कम से कम उसका कुछ हिस्सा सुविधाओं के रूप में हमारे पास आना चाहिए या नहीं। मान लिया की कुछ प्रतिशत ही टैक्स देने वाले हैं और अधिकतर को सरकार को उसी पैसों से सुविधाएँ देनी होती हैं। ठीक है, परन्तु आप के खर्चों और शान-ओ-शौकत में कोई कमीं नहीं आ सकती। ऐसा जीवन जीते हैं कि एक गरीब आदमी ऐसी सुविधाओं की कल्पना तक नहीं कर सकता। आप शान-ओ-शौकत से रहते हैं क्योकि सारा दिन धूप में भूखे-प्यासे रहकर धरती का सीना चाक कर आपका और देश का पेट भरने हेतु मेहनत करने वाले गरीब किसान ने आपको वोट दिया है, जिसके बच्चों को शायद ही किसी त्यौहार में नए कपडे नसीब हुए हों। वह तो सदियों से आत्मनिर्भर है, बस आपको ही होना बच गया है।
सच्चाई तो यह है कि बिना जनता के आप कुछ भी नहीं हैं। आपके द्वारा बनाये हुए कानूनों की चक्की में जनता पिसे, सीमाओं पर गोलियां जनता के बेटे-भाई खाये, सरकारी अस्पतालों, विद्यालयों में जनता जाएँ। दिवाली में चाइनीज़ झालरों का बहिष्कार जनता करें, भ्रष्टाचार से जनता लड़े, गरीबी में जनता जियें, आपके द्वारा फैलाये मनगढंत मुद्दों पर जनता लड़े, आदि आदि। तो फिर से प्रश्न यह है कि शुरुआत जनता से ही क्यों, आपसे क्यों नहीं। परन्तु कहीं न कहीं हम जनता भी जिम्मेदार हैं इसके लिए। सब कुछ जानकार भी अनजान, चुप।
मुझे आज तक समझ नहीं आया कि जन सेवा का रास्ता नेता बनने से होकर क्यों गुजरता है। राजनीती व्यापार ही तो है, लोगों के सपनों का व्यापार, झूठे वादों का व्यापार, बेतुके दावों का व्यापार, आपस में लड़ाने का व्यापार, और एक सच्चे व्यापारी की तरह खुद की जेबें भरकर मुनाफा कमाने का व्यापार। तो बताइये इसमें जन सेवा कहाँ आ गई। आप साल दर साल और अमीर होते जाते हो और आपका वोटर गरीब। यही तो आप चाहते हो क्योकि अगर वो अमीर हो गया या पढ़ लिख गया तो आपकी रैलियों में कौन आएगा, आपके आगे-पीछे कौन घूमेगा। और जो काम करते भी हो न कुछ, तो वो करने के लिए ही हमने आपको वहां बिठाया है। कुछ माननीय लोग तो इतना दम्भ में रहते है, जिस गुरूर में बात करते है, भूल जाते हैं कि इस काबिल इसी जनता ने बनाया है आपको।
ख़ास आप नहीं हो बल्कि इस देश की जनता है वही जनता जिसका पांच साल तक शोषण ही होता रहता है, कठपुतली समझा जाता है। आप तो बस मेहमान हैं, पांच साल के लिए आएंगे-जायेंगे परन्तु यह जनता यहीं रहेगी आपको बनाने के लिए, आपको बचाने के लिए। लेकिन इन्ही पांच सालों में आप अपनी पांच पुश्तों के लिए व्यवस्थाएं कर चुके होते हैं। घोटाले आदि करा कर, जनता के खून-पसीनों की कमाई चूस कर, भ्रस्टाचार में नहा कर, और हर वो काम कर-कर जो आम आदमी की सोच से परे है। न जाने कितनों पर कितने ही मामले दर्ज हैं, पता नहीं किन-किन धाराओं में। और यही लोग हमारे लिए कानून बनाते हैं। कहीं न कहीं हमारी चूक है जो हम इन्हे चुन कर हमारा भविष्य निर्माता बना देते हैं।
हालांकि सारे ही ऐसे नहीं हैं। कुछ हैं अच्छे अपवाद जो वास्तव में उदाहरण हैं कि जनप्रतिनिधि क्या होता है। जिनसे सभी को सीखने की आवश्यकता हैं। जो अपने जीवन में सादगी और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति रहे हैं। जनता के लिए जिए हैं, उनके सुख-दुःख में खड़े रहें हैं।
आप क्या सोचते हैं कि विपक्ष भी होता है। वो सिर्फ जनता के लिए होता है नहीं तो परदे के पीछे एक ही थाली..... सत्ता में कोई भी रहे विपक्ष की भी बल्ले-बल्ले ही रहती है, बराबरी की भागेदारी। एक ही सिक्के के दो पहलू।
और इन सब के अलावा भी आपके पास तो एक राम बाण उपाय है ही, आंकणो की बाजीगरी। अफलातूनी आंकड़ें, जो सिर्फ आपके पास ही है। आंकङे ऐसे दिखा दो की जनता सोचे कि भाई हम ही गलत हैं। लगता है की देश में सब खुश हैं, दुःख का तो नामोनिशान ही नहीं बचा। चाहे देश में महामारी हो, प्राकृतिक आपदाएं हो या कुछ भी हो ये बाज़ीगरी चलती ही रहती है, बिना रुके, बिना थके।
एक बात जान लीजिये आत्मनिर्भर भारत अवश्य बनाना है परन्तु व्यवस्थाओं को लचीला बनाकर, आसान बनाकर। और गरीब, मजदूर, किसान की अनदेखी करके आत्मनिर्भर बनने की परिकल्पना व्यर्थ ही है। जैसा कि हम जानते ही हैं कि व्यवस्थाओं में गरीब, मजदूर, किसान का कितना उच्च स्थान है। इसकी एक बानगी हमें लॉकडाउन में देखने को मिल ही चुकी है। जनता की सेवा जनता ने ही की है। आप लोग तो बस दावों और एक-दूसरों पर दोषारोपण में ही व्यस्त रहें हैं।
आने वाले समय में देखते हैं, आत्मनिर्भर भारत का जिन्न क्या रंग लाएगा।
सचिन 'निडर'
3 Comments
गजब भाई
ReplyDeleteगजब भाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार
ReplyDeletePlease comment, share and follow if you like the post.
Emoji