बारिश और बाढ़: भारत के गाँव और शहर की समस्या

 

बारिश और बाढ़: भारत के गाँव और शहर की समस्या



Flood and rain problems in India, showing village fields under water and city roads filled with potholes



भारत में मानसून का आगमन खुशियाँ तो ला सकता है, लेकिन साथ ही सड़कों पर गंभीर संकट भी लेकर आता है। गड्ढों, जलजमाव, टूटे फुटपाथ और खराब निर्माण की वजह से सड़क यात्रा पहले से ख़तरे भरी बन जाती है।

बरसात का नाम सुनते ही आमतौर पर लोगों के मन में ठंडक, हरियाली, भीगे पेड़-पौधे और चाय-पकौड़े की तस्वीरें आती हैं। लेकिन भारत में अगर आप शहर या कस्बे की सड़कों पर रहते हैं, तो बरसात का मतलब कुछ और ही होता है – गड्ढों का त्यौहार और पानी का समंदर

सड़कें जैसे बरसात का इंतज़ार ही करती हों। बरसात की पहली बूंद गिरते ही तारकोल का मेकअप धुलने लगता है, सड़कें उखड़ जाती हैं और जगह-जगह गड्ढे खुल जाते हैं। फिर वही गड्ढे पानी से भरकर मिनी-तालाब का रूप ले लेते हैं। आदमी समझ नहीं पाता कि यह सड़क है या कोई खेत का मेड।

बारिश में सड़क पर चलना किसी एडवेंचर स्पोर्ट से कम नहीं होता। बाइक पर बैठो तो हर गड्ढे में कूदते ही झटका ऐसा लगता है जैसे किसी जिम का वर्कआउट मुफ्त में मिल रहा हो। पैदल चलो तो कपड़े कीचड़ से ऐसे सज जाते हैं जैसे किसी ने जानबूझकर छींटे मारे हों।

सबसे मज़ेदार हालत ट्रैफिक की होती है। पानी जमा हो गया, गड्ढे छुप गए – अब गाड़ियों की कतार इस डर से धीरे-धीरे चलती है कि पता नहीं अगला पहिया सड़क पर जाएगा या गड्ढे में। और अगर गाड़ी फँस गई तो फिर सबका मनोरंजन शुरू – लोग खड़े होकर तमाशा देखते हैं, धक्का मारने की सलाह देते हैं, और कभी-कभी वीडियो भी बना लेते हैं।

सरकार हर साल वादा करती है – “इस बार सड़कें मजबूत बनेंगी।” लेकिन हकीकत ये है कि सड़क की मजबूती और नेता के वादे में कोई फर्क नहीं – दोनों पहली बारिश में ही बह जाते हैं।

असल में, बारिश हमें सड़क की असलियत दिखा देती है। पूरे साल जो सड़कें चमचमाती दिखती हैं, उनकी पोल बरसात खोल देती है। और हम आम लोग हर बार यही सोचते हैं – “शायद अगली बार सुधरेगा।” लेकिन अगली बार वही हाल।

बारिश और बाढ़ भारत में हर साल गाँव और शहर दोनों को परेशान करती है। बाढ़ सिर्फ फसलों को नहीं बहाती, बल्कि किसान की उम्मीदें भी डूबो देती है। यही पीड़ा, इस दर्द को शब्दों में ढालने की कोशिश मैंने अपनी बाढ़ पर लिखी कविता Poem-on-Flood में भी की है।


बारिश, सड़कें और बाढ़ :

भारत में बरसात को “जीवनदायिनी” कहा जाता है। कहा जाता है कि बारिश धरती को हरियाली देती है, खेतों को पानी देती है और किसानों के सपनों को सींचती है। यह सच है, लेकिन यह आधा सच है। बारिश सिर्फ़ अमृत नहीं, जहर भी बनती है। और यह जहर सबसे ज़्यादा गरीब आदमी और गाँव के किसान को ही पीता है।

बरसात का दूसरा चेहरा है – टूटी सड़कें, गड्ढों में भरा पानी, नालियों का उफान और गाँवों में आई बाढ़। यह सच्चाई है जिसे हर साल करोड़ों लोग झेलते हैं लेकिन किसी की नज़र में यह समस्या उतनी बड़ी नहीं जितनी होनी चाहिए।

सड़कें और गड्ढों का लोकतंत्र

भारत में सड़कें बरसात का सबसे आसान शिकार होती हैं। पहली ही बारिश आते ही सड़कें पिघलने लगती हैं, जगह-जगह गड्ढे बन जाते हैं और पैदल चलने वालों से लेकर गाड़ियों तक सब परेशान हो जाते हैं।

गरीब आदमी के लिए यह परेशानी दोगुनी है। वह पैदल या साइकिल से चलता है, और हर गड्ढा उसके लिए खतरा है। कीचड़ में फिसलकर चोट लग जाए तो इलाज का खर्च उसकी जेब ढीली कर देता है। अमीर तो कार में बैठकर निकल जाते हैं, लेकिन गरीब को हर कदम पर गड्ढों से लड़ना पड़ता है।

जब बरसात बन जाती है बाढ़

बरसात की असली मार तब पड़ती है जब बारिश ज़्यादा हो जाती है और वह बाढ़ का रूप ले लेती है। नालियाँ और नाले भरकर उफनने लगते हैं, गाँव की गलियाँ तालाब में बदल जाती हैं, और झोपड़ियों में पानी घुस जाता है।

गाँव के गरीब आदमी के लिए बाढ़ सिर्फ़ पानी नहीं, बल्कि बरबादी का पैग़ाम है। मिट्टी के घर बह जाते हैं, छप्पर गिर जाते हैं, अनाज का थैला गीला होकर सड़ जाता है। कई बार तो लोग रातों-रात बेघर हो जाते हैं।

गाँव में बाढ़ का सबसे बड़ा असर खेती पर पड़ता है। किसान अपनी साल भर की मेहनत से बोई फसल को बचा नहीं पाता। धान या गेंहूँ के खेत पानी में डूब जाते हैं, बीज गल जाते हैं और पैदावार चौपट हो जाती है।

मवेशी, जो गरीब किसान की सबसे बड़ी पूँजी हैं, बाढ़ में फँसकर मर जाते हैं। न चारा बचता है, न पानी। बाढ़ का पानी जब उतरता है तो खेतों में रेत और गाद भर जाती है, जिससे जमीन कई साल तक बंजर हो जाती है।

सड़कें टूटने से गाँव शहर से कट जाते हैं। दवा, खाना और ज़रूरी सामान लाना मुश्किल हो जाता है। स्कूल और अस्पताल तक पहुँचना नामुमकिन हो जाता है।

बाढ़ और बरसात का सबसे बड़ा साथी है बीमारी। गड्ढों और नालों में रुका पानी मच्छरों की फैक्ट्री बन जाता है। डेंगू, मलेरिया, टाइफॉयड, डायरिया जैसी बीमारियाँ हर गाँव में फैल जाती हैं।

गरीब आदमी इलाज के लिए सरकारी अस्पताल की ओर दौड़ता है। लेकिन वहाँ दवा नहीं मिलती, डॉक्टर कम होते हैं और लाइन लंबी होती है। प्राइवेट अस्पताल जाए तो जेब खाली हो जाती है। ऐसे में गरीब के पास बीमार होकर भी चुपचाप सहने के अलावा कोई चारा नहीं बचता।

नेताओं और सिस्टम की लापरवाही

हर साल नेता लोग वादा करते हैं – “इस बार गड्ढामुक्त सड़कें बनेंगी, बाढ़ से बचाव होगा, नालियाँ पक्की होंगी।” लेकिन सच यही है कि हर साल वही कहानी दोहराई जाती है।

चुनाव आते हैं तो नेता गली-गली घूमते हैं, लेकिन जनता जब पानी में डूबी होती है तो सब हवा हो जाते हैं।
"बाढ़ और बारिश की समस्या प्रकृति से कम, सिस्टम की नाकामी से ज़्यादा है।"
"सरकारी फ़ाइलों में हर साल करोड़ों रुपये बारिश और बाढ़ से निपटने के लिए निकलते हैं, मगर ज़मीन पर नतीजा सिर्फ गड्ढ़ों और गंदगी के रूप में दिखाई देता है।"
सड़क बनाने का ठेका ऐसे दिया जाता है कि पहली ही बारिश में सड़क टूट जाए। नाले और नालियाँ साफ नहीं की जातीं। बाढ़ आने पर राहत शिविर का ढोल पीटा जाता है, लेकिन उसमें गरीब को न दवा मिलती है, न खाना। हाँ, कैमरे ज़रूर पहुँचते हैं ताकि नेता जी की फोटो खिंच जाए।
कहते हैं भारत तरक्की कर रहा है। लेकिन जब बरसात आती है तो यह तरक्की गड्ढों और कीचड़ में बह जाती है।
हमारे देश की सड़कें और गाँव की गलियाँ बरसात में असलियत दिखा देती हैं।
बारिश और बाढ़ भारत में प्राकृतिक आपदा से ज़्यादा नेताओं और सिस्टम की लापरवाही का परिणाम लगती है। हर साल वही हालात दोहराए जाते हैं, लेकिन न व्यवस्था बदलती है, न सोच। जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि भारत में औसतन 1,600 से अधिक लोग हर साल बाढ़ से मरते हैं और लगभग ₹7,000 करोड़ की संपत्ति का नुकसान होता है। इतने बड़े नुकसान के बावजूद प्रशासन केवल कागज़ी योजनाओं और बैठकों में व्यस्त रहता है।
गाँवों में बाढ़ आते ही खेत जलमग्न हो जाते हैं, फसलें नष्ट हो जाती हैं। कृषि मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि हर साल करीब 35 लाख हेक्टेयर ज़मीन बाढ़ से प्रभावित होती है। किसानों को मुआवज़ा देने के वादे तो किए जाते हैं, लेकिन वह महीनों तक सरकारी दफ़्तरों और लालफीताशाही में फँसा रहता है। किसान कर्ज़ तले दबता जाता है और उसकी मेहनत पानी में बह जाती है।
शहरों की हालत भी किसी से कम नहीं। दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, पटना जैसे बड़े शहरों में बारिश शुरू होते ही सड़कों पर तालाब जैसा दृश्य बन जाता है। गाड़ियाँ बंद हो जाती हैं, अस्पतालों तक पहुँच मुश्किल हो जाती है और रोज़मर्रा की ज़िंदगी ठप हो जाती है। अरबों रुपये स्मार्ट सिटी और नाली-सफाई पर खर्च होने के बावजूद हालात जस के तस हैं। CAG की रिपोर्टें बार-बार उजागर करती हैं कि बाढ़ नियंत्रण और जल निकासी के लिए जारी धन का बड़ा हिस्सा या तो भ्रष्टाचार में ग़ायब हो जाता है या गलत जगह खर्च होता है।
असलियत यह है कि बाढ़ और बारिश की समस्या का बड़ा कारण प्राकृतिक नहीं, बल्कि राजनीतिक लापरवाही है। अगर नेता चुनावी वादों से आगे बढ़कर ज़मीनी स्तर पर काम करें तो न गाँव डूबेंगे, न शहर जलमग्न होंगे। लेकिन जब तक सिस्टम की प्राथमिकता जनता नहीं बल्कि राजनीति रहेगी, तब तक हर साल वही त्रासदी दोहराई जाती रहेगी।
अमीरों के लिए बारिश रोमांस है – “कॉफी, म्यूजिक और रेन डांस।”
लेकिन गरीबों के लिए बारिश मातम है – “भीगा हुआ तन, टूटा हुआ घर और बर्बाद फसल।”

आइए देखते हैं कि किस मंत्रालय की इस संदर्भ में क्या जिम्मेदारी है।

मुख्य मंत्रालय और उनकी जिम्मेदारी

गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs)


बाढ़, भारी बारिश, भूकंप जैसी आपदाओं से निपटने और राहत कार्य की जिम्मेदारी इन्हीं की है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) गृह मंत्रालय के तहत आता है।

जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti) -

कुल बजट (2024-25): ₹98,714 करोड़

नदियों का जलस्तर, बांध, जल निकासी और नदी प्रबंधन की जिम्मेदारी।
बाढ़ नियंत्रण योजनाएँ और गंगा-ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों से संबंधित प्रोजेक्ट।


ग्रामीण विकास मंत्रालय (Ministry of Rural Development)

गाँवों की सड़कें (PMGSY योजना), नालियाँ, और ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर।
बाढ़ के बाद गाँव में टूटी सड़कों और खराब हुए घरों की मरम्मत।


सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways)

हाईवे और मुख्य सड़कों की जिम्मेदारी।
बारिश-बाढ़ से टूटे नेशनल हाइवे और पुल की मरम्मत।


कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) 

2024-25 में बजट आवंटन था ₹1,32,470 करोड़, 2025-26 में बढ़कर ₹1,37,756.55 करोड़ हो गया—जिसमें PM Kisan, कृषि बीमा जैसे योजनाओं का समावेश है

बाढ़ से फसलें नष्ट होने पर किसानों को मुआवजा और बीमा (PM Fasal Bima Yojana)।
कृषि संकट और खाद्य सुरक्षा की देखरेख।


शहरी विकास मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs)

शहरों में नालियाँ, सीवरेज सिस्टम, और नगर निगम से जुड़ी जिम्मेदारियाँ।
शहरी जलभराव और गंदगी रोकने के उपाय।


स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health & Family Welfare)

बाढ़ के बाद फैलने वाली बीमारियों (डेंगू, मलेरिया, हैजा) पर नियंत्रण।
मेडिकल कैंप और दवाइयों की व्यवस्था।


आसान शब्दों में कहें तो गाँव में ज़्यादातर जिम्मेदारी ग्रामीण विकास, कृषि और जल शक्ति मंत्रालय की होती है। शहरों में यह जिम्मेदारी शहरी विकास, सड़क परिवहन और स्वास्थ्य मंत्रालय की होती है, और आपदा राहत की बड़ी जिम्मेदारी गृह मंत्रालय (NDMA) की होती है।


गरीब आदमी की बस यही पुकार है –
“हमें भी इंसान समझो।”

हम भी चाहते हैं कि हमारे बच्चे सूखे कपड़ों में स्कूल जाएँ।
हमारे खेत बर्बाद न हों, हमारी झोपड़ी सुरक्षित रहे।
हम भी चाहते हैं कि बारिश आए तो खुशी का मौसम बने, डर का नहीं।

कब सुधरेगी यह हालत?

बरसात, सड़कें और बाढ़ – यह हर साल की वही पुरानी कहानी है।
लेकिन सवाल यह है कि कब तक?
कब तक गरीब आदमी हर साल अपनी मेहनत, अपनी फसल, अपना घर और अपनी उम्मीदें इस पानी में डुबोता रहेगा?
कब तक सड़कों पर गड्ढे और गाँवों में बाढ़ गरीब की किस्मत बने रहेंगे?

बारिश जीवन देती है, लेकिन भारत के गरीब के लिए यह अकसर जीवन छीन भी लेती है।

एक चार्ट के माध्यम से बाढ़ से प्रभावित लोगों की स्थिति समझते हैं।


2019–2023 में बाढ़ से प्रभावित लोग (लाखों में)


कई मौतें और दुर्घटनाएं (with source)

2018–2020 के बीच, गड्ढों से होने वाली सड़क हादसों में 5,626 मौतें (2018: 2,015, 2019: 2,140, 2020: 1,471) हुईं Hindustan Times+7The Federal+7Indiatimes+7

2013–2017, लगभग 14,983 मौतें और 11,386 दुर्घटनाएं गड्ढों के कारण हुईं savelifefoundation.org+1savelifefoundation.org+1

वर्ष 2022 में 1,418 मौतें हुईं, जो उस वर्ष की सबसे कम संख्या थी Times of India+1Times of India+1

राज्यवार आंकड़े

2016 में गड्ढों से 6,424 दुर्घटनाएं, 2,324 मौतें हुईं; यूपी में 1,436 घटनाएं थीं (सबसे अधिक) Times of India+5savelifefoundation.org+5savelifefoundation.org+5

उत्तर प्रदेश 2022 में कुल 1,030 मौतों के साथ अकेला सबसे ख़तर्नाक राज्य बना — यह भारत के कुल गड्ढा-दुर्घटनाओं का 55.5% है Hindustan Times

तकनीकी कारण और अव्यवस्था

  1. खराब निर्माण गुणवत्ता
    सस्ती सामग्री, नकली बिटुमिन और कम परत वाली सड़कें मानसून में टूट जाती हैं Le Monde+7rjwave.org+7Hindustan Times+7

  2. बहती जल निकासी और गड्ढे
    ड्रेनेज, जलस्तर में वृद्धि और समय पर मरम्मत न होने के कारण गढ्ढे बढ़ते हैं और सड़कें टूटती हैं

  3. जिम्मेदारी की कमी
    ठेकेदार दोषमुक्त रहते हैं—"defect liability period" का घोर उल्लंघन होता है, मरम्मत की घोषणाएँ कागज़ों तक सीमित रहती हैं Times of IndiaTimes of India

प्रत्येक वर्ष बारिश और बाढ़ से आम जनमानस खुद ही लड़ता आया है ।




सचिन 'निडर




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