लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका- भारतीय मीडिया

 

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका- भारतीय मीडिया

Indian Electronic media

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लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका- भारतीय मीडिया

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भारतीय मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंम्भ कहा जाता है, आज शायद अपनी जिम्मेदारियां भूलता जा रहा है। यह मजबूत स्तम्भ कुछ ढहता सा नजर रहा है। उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह विश्व शांति एवं विश्व बंधुत्व की भावना को प्रोत्साहित करें।कुछ क्षुद्र लाभों के कारणवश कुछ मीडिया संस्थान अपनी विश्वसनीयता एवं गरिमा खोते जा रहे हैं। 

ख़बरों का बाज़ारीकरण हो चुका है। जो खबरे आपको खबरिया चैनल पर चीखते-चिल्लाते एंकर परोसते हैं उसको आपके हिसाब से नहीं बल्कि टी.आर.पी. के हिसाब से चुना जाता है। वैसे भी अब खबर से ज्यादा महत्व उसको दिखाना कैसे है इस पर हो गया है। अधिकतर खबरिया चैनल देखते हुए सोचता हूँ कि ये समाचार चैनल है या कोई मजाकिया चैनल।

जनता के मुद्दे तो कब के खत्म हो चुके हैं, सरकारों के लिए भी एवं मीडिया के लिए भी। अब तो बस बरगलाने की कोशिशें जारी हैं। चैनलों पर प्रायोजित बहस देखीं हैं आपने, प्रारम्भ कहीं से होती हैं और समाप्त कहीं पर। अमर्यादित भाषाएं तक उन बहसों का हिस्सा बनने लगीं हैं। 'ब्रेकिंग खबरों' के नाम पर कुछ भी परोस दिया जाता हैं, कुछ भी।

प्रतिस्पर्धा के इस युग में बस होड़ मची हुई है। नम्बर एक पर रहने की होड़। पता नहीं कहाँ से सर्वे कराते हैं हर चैनल नम्बर एक पर होने की ताल ठोकता नजर आता है। इनके सारे सवाल बस विपक्ष के लिए होते है। जैसे वही सत्ताधारी है। आप गौर करियेगा कि सत्ता पक्ष से किस तरह के सवाल पूछे जाते हैं और उन सवालों को पूछते समय पत्रकार का लाजबाव अभिनय। आज मीडिया यह भूल चुका है कि वह लोकतंत्र का चौथा स्तंम्भ भी है। उसका काम जनता की आवाज को सोई हुई सरकारों तक पहुचाना है, जो जमीनी हकीकत है उस से सरकारों को परिचित कराए, जनमानस की तरफ से सवाल करे, न कि सत्ताओं पर उठाए गए सवालों का बचाव करे।

निष्पक्ष ख़बरे अब स्वप्न हो चुकी हैं। जैसे समाचार एजेंसियां सरकारों के इशारे पर काम कर रहीं हो। कौन सी खबर दिखाई जाए कौन सी दबाई जाए, लगता है कि सरकारें तय करती हैं।शायद कुछ संस्थान अब जनता के कम सरकार के प्रवक्ताओं की भूमिका में है। प्रतिस्पर्धा में जल्दी दिखाने के चक्कर में गलत खबरे तक दिख जाते है जिससे कभी-कभी तो खबरों की विश्वसनीयता तक खतरे में पड़ जाती है। 

हालांकि कुछ अच्छे मीडिया संस्थान भी दिख जाते हैं जो जनता से जुड़े प्रश्न पूछने की हिम्मत रखते हैं, अपने दायित्वों का निर्वहन करने की कोशिश करते हैं परन्तु अधिकतर अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़कर इस अंधी दौड़ में बस भागे जा रहें हैं। आशा है कि जल्दी ही भारतीय मीडिया को इस बात का एहसास हो कि उसकी क्या जिम्मेदारी है एवं लोकतंत्र में उसका क्या स्थान है।

आजकल अधिकतर मीडिया संस्थान ऊटपटांग खबरों के पीछे भागते रहते हैं। उन्हें इतनी फुरसत ही कहाँ कि वह बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, बढ़ते अपराध, बढ़ती महामारी, किसानों की समस्या एवं गिरती अर्थव्यवस्था आदि के पीछे भी भाग कर खबरें दिख सके।

संसद, विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका द्वारा हुई चूक को सामने लाकर मीडिया लोकतंत्र की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देता है। मीडिया के कारण कई घोटाले भी उजागर होते हैं एवं जनता के अधिकारों की रक्षा भी होती है बशर्ते वह करना चाहे तब।

मीडिया के जीवनव्यापी महत्व को देखते हुए उस से अपने दायित्वों के ईमानदारी पूर्वक निर्वाहन की आशा होती है। मीडिया को क्षुद्र लाभों एवम भय मुक्त रहकर सामाजिक नेतृत्व की भूमिका निभानी चाहिए।


भारतीय मीडिया पर कविता-

Hindi Poem on Indian Media


क्या कहूँ आज मीडिया को,

चौथा स्तंभ कहाता है।

पर आज का मीडिया कैसा हो,

यह प्रश्न कहीं रह जाता है।


चापलूसियां, चाटुकारिता,

खबरें बनकर बहतीं हैं।

निर्लज्जता के पैमानों पर,

नई कहानियां गढ़ती हैं।

अंधी दौड़ों में शामिल,

फिर साँच कहाँ कह पाता है।

आज का मीडिया कैसा हो,

यह प्रश्न कहीं रह जाता है।


लोकतंत्र में भागेदारी,

बची किताबों वाली है,

जनता के सब मुद्दे गायब,

सत्ताओं वाली लाली है।

खबरें लोलुप थाली में,

कुछ भी परोस कर जाता है।

आज का मीडिया कैसा हो,

यह प्रश्न कहीं रह जाता है।


चीख-चीख खबर सुनाते,

बहसों में लोगो को लड़ाते।

बेशर्मी के ओढ़ लबादे,

पत्रकारिता हनन कराते।

पानी आंखों वाला शायद,

धन के आगे मर जाता है।

आज का मीडिया कैसा हो,

यह प्रश्न कहीं रह जाता है।

                   सचिन 'निडर'





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