भारतीय गाँव- कविता
मेरा गाँव
भारतीय गाँव- कविता
मेरा गाँव
खेतों की मेडों पर चलकर,
छप्पर वाले घर में रहकर,
सोंधी माटी में खेल-खेल,
अगणित देशों में छाये हैं,
हम उन गाँवों से आये हैं।
शुद्ध हवा को दुनियाँ तरसे,
भारत का दिल बनकर धडके,
जल का मोल है प्रेम जहाँ पर,
पहचान साथ में लाये हैं,
हम उन गाँवों से आये हैं।
मुल्कों का जो पेट भरे,
समझौतों में है उम्र कटे,
संस्कार के बीज जहाँ से,
दुनियाँ भर में छाये हैं,
हम उन गाँवों से आये हैं।
कच्चे घर की मजबूत जड़ें,
फसलें जैसे संगीत कहें,
जिनकी तर्ज़ों पर फार्म हॉउस,
भर-भर तुमने खुलवाए हैं,
हम उन गांवों से आये हैं।
तुमने देखे हैं सपनों में,
वह गलियाँ जो हैं अपनों में,
देशप्रेम के गीत जहाँ पर,
सदियों भर से गाये हैं,
हम उन गांवों से आये हैं।
चूल्हे की रोटी स्वाद जगाये,
पंछी के स्वर अलख जगाएं,
गाँव-गाँव से मिलकर बनता,
भारत महान कहलाये है,
हम उन गाँवों से आये हैं।
कोई करनी नहीं खुशामद,
तुझको तेरा शहर मुबारक,
गांव समाया है रूहों मे,
स्थितियां अब तड़पाये है,
हम उन गाँवों से आये हैं।
जो माटी की क्रीड़ाओं पर,
बेटे जिनके सीमाओं पर,
हिन्द की खातिर प्राण तजे,
वह कफ़न तिरंगा लाये हैं,
हम उन गांवों से आये हैं।
बेटे जिनके सीमाओं पर,
हिन्द की खातिर प्राण तजे,
वह कफ़न तिरंगा लाये हैं,
हम उन गांवों से आये हैं।
सचिन 'निडर'
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