भारत का दिल - गाँव
गाँव पर कुछ पंक्तियाँ-
गाँव पर कविता
ना समझो हमें गंवार,
हम हैं देश सदा से चलाते।
न होता मेरा गाँव,
तो यह शहर कहाँ से आते।
खेतों से लेकर सीमा तक,
हर हाल में खुद को पीसा है।
लहू और पसीनों से,
इस देश को हमने सींचा है।
कल तक गांवों को लेकर जो,
उपहास उड़ाते थे अपना।
वो आज जरा भौचक्के है,
इतिहास जो पढ़ते हैं अपना।
धरती से लेकर अम्बर तक,
सबने यह महिमा गाई है।
विधान से लेकर संसद तक,
गांवो की संख्या छाई है।
कितना भी बाहर रह लो,
हर दिल बस यह ही कहता है।
भारत का दिल तो बस साहब,
इन गांवों में ही बसता है।
सचिन 'निडर'
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