ऐ सरकार सुन लीजैं

 


ऐ सरकार सुन लीजैं

सुनिये सरकार
हिंदी कविता




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ऐ सरकार सुन लीजैं

सुनिये सरकार
हिंदी कविता



इतिहास गवाह है, कि भारत में सरकार कोई भी रही हो या रहे, भारत के मतदाताओं यानी कि वोटरों के हालातों में कोई खास सुधार नहीं हुआ। मतदाताओं से केवल वोट के लिए सियासत का लेना-देना रहा है। सत्ता मिली तो जनता का हाल जनता स्वयं जाने। 

माननीय पांच वर्ष के लिए इस देश को, अपने क्षेत्र को अपनी जागीर समझने की भूल कर बैठते हैं। मान बैठते हैं कि पांच साल जो करना है कर लो इसके बाद का पता नहीं। किंतु यह नहीं जानते कि अगर जनता के लिए अपने वह पांच वर्ष समर्पित करके देखें तो वही जनता उन्हें कई वर्षों के लिए स्थापित कर देगी।

सता मिलने के पूर्व जो व्यक्ति/पार्टी आपके द्वार पर प्रणाम की मुद्रा में दिखाई पड़ते थे, वही सत्ता मिलते ही आपकी आंखों से ओझल हो जाते हैं। इन सब बातों में कोई नई बात नहीं हो रही, आप सब जानते ही है।

आधुनिक दौर टेक्नोलॉजी से लैस, जागरूक युवाओं का दौर है। बदलते परिदृश्य में अब वह समय नहीं रहा जब हमेशा जनता ही सरकारों की सुनती थी। अब जनता भी प्रश्न करना सीख गई है

खैर, नसीहत देने के लिए सत्ताओं/सरकारों/माननीयों के पास काफी संख्या में सलाहकार मौजूद हैं। किंतु एक जनता का अंग होने के नाते सवाल उठाना हमारा भी संवैधानिक अधिकार है। लोकतंत्र में अपनी बात रखनी एवं प्रश्न करने बेहद ही आवश्यक हैं और इस अधिकार का प्रयोग हम सभी को 'निड़र' होकर करना ही चाहिए।

तो जब कुछ प्रश्नों/समस्याओं को गूंथा तो कुछ शब्द बनें और उन शब्दों ने कविता का रूप अख्तियार कर लिया। कुछ शिकायतें एवं आलोचनाएं। सभी सरकारों से अनुरोध है कि आलोचनाओं से विचलित मत होइए, कुछ सुधार करिये। 

प्रश्नों से डरिये मत उनका सामना करिये। आलोचनाओं को यदि सकारात्मकता से लिया जाए तो काफी कुछ सुधारा जा सकता है। और हम तो जनता है, अपनी वेदनाएं, पीड़ाएँ, समस्याएं, शिकायते अपनी सरकारों से नहीं कहेंगे तो फिर किस से कहेंगें।


ऐ सरकार सुन लीजैं

सुनिये सरकार
हिंदी कविता


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ऐ सरकार सुन लीजैं

सुनिये सरकार
हिंदी कविता



तड़पते दिल कि है आवाज़,

ऐ सरकार सुन लीजै,

हमारे साथ ये व्यवहार,

ऐ सरकार सुन लीजैं।


झुलसता है ये मन मेरा,

तेरे वादों की गर्मी से।

बदन पर ठोकरें हैं आज,

मेरे रूख की ही नर्मी से।

तुम्हारे झूठ का व्यापार,

ऐ सरकार सुन लीजैं।


हैं शर्मीले मगर बुजदिल,

नहीं हैं हम समझ लीजै।

कोई तो काज जनसेवा का,

हो पाए तो कर दीजै।

हमारे वोट का आभार,

ऐ सरकार सुन लीजैं।


है महंगाई चरम पर आज,

बता कैसे जिये जीवन।

नहीं कोई है रोजगार,

अदा कैसे करें कीमत।

तेरे नाकाम काज का हाल,

ऐ सरकार सुन लीजैं।


कोई हो तन्त्र तो बोलो,

बचा जो भृष्टता से हो।

करे जो प्रश्न कोई भी,

कहोगे धृष्टता से हो।

बता कैसे हुए लाचार,

ऐ सरकार सुन लीजैं।


स्वयं तो बैठ सिंघासन,

मुकुट सोने का लगवाया।

हैं सुविधाएं सभी हाजिर,

दर्द जनता को बंटवाया।

सभी का एक जैसा हाल,

ऐ सरकार सुन लीजैं।


महामारी में भी लड़ते रहे,

और खूब लड़वाया।

गबन सबने किये मिलकर,

हमें खुद हाल छुड़वाया।

शवों पर भी हुआ आघात,

ऐ सरकार सुन लीजैं।


सुलगते प्रश्न बांकी है,

बहुत दिल में भरी उलझन।

शिकायत के पुलिंदे हैं,

नजर आये नहीं सुलझन।

करेगें दर्द का भी हिसाब,

ऐ सरकार सुन लीजैं।


किये होंगें बड़े ही काज,

यकीनन ही सभी मिलकर।

बुरा है हाल फिर भी आज,

है सरकारें खड़ी जिनपर।

दुःखद है वोटरों का हाल,

ऐ सरकार सुन लीजैं।


तड़पते दिल कि है आवाज़,

ऐ सरकार सुन लीजै,

हमारे साथ ये व्यवहार,

ऐ सरकार सुन लीजैं।

              सचिन 'श्रीवास्तव'





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