भारत में बढ़ती महंगाई की समस्या
The problem of rising inflation in India
भारत में बढ़ती महंगाई की समस्या
The problem of rising inflation in India
दिनों-दिन भारत में बढ़ती महंगाई की समस्या तीव्र गति से बढ़ती ही जा रही है। इस पर कोई भी अंकुश नहीं लग पा रहा है। कहीं न कही इसका खामियाजा सबसे अधिक जनता को ही भुगतना पड़ रहा है। उस जनता को जिसके वोट की ताकत से देश की सरकारें बनती एवं बिगड़तीं हैं। राजनैतिक पार्टियां जब विपक्ष में होती हैं तो उनको महंगाई कभी-कभार दिख भी जाती है किन्तु सत्ता प्राप्त करते ही वो महंगाई के भी फायदे बताने लग जाते हैं। महंगाई से कराहती जनता की कराह किसी को भी दिखाई नहीं पड़ती। या यूं कहे कि देख कर भी जिम्मेदार आँख-कान मूँद कर बैठ जाते हैं।
बढ़ती महंगाई की समस्या किसी एक व्यक्ति विशेष की समस्या नहीं है। इस समस्या से प्रत्येक तबका प्रभावित होता है। इस गंभीर समस्या की तरफ जिम्मेदारों को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। फालतू तर्क/बयानबाजी कर के देश की जनता के घाव पर नमक तो बिलकुल भी नहीं छिड़कना चाहिए।
बढ़ती महंगाई की समस्या किसी भी देश के लिए एक दीमक की भाँति है जो धीरे-धीरे देश को खोखला कर देगी। इस देश में सबसे अधिक तबका गरीब है जिसके लिए एक वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मशक्कत है। यह समस्या दिन ब दिन गंभीर रूप धारण करती जा रही है जिसका कुछ निदान जिम्मेदारों को अवश्य निकलना चाहिए।
बढ़ती महंगाई की समस्या किसी एक व्यक्ति विशेष की समस्या नहीं है। इस समस्या से प्रत्येक तबका प्रभावित होता है। इस गंभीर समस्या की तरफ जिम्मेदारों को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। फालतू तर्क/बयानबाजी कर के देश की जनता के घाव पर नमक तो बिलकुल भी नहीं छिड़कना चाहिए।
बढ़ती महंगाई की समस्या किसी भी देश के लिए एक दीमक की भाँति है जो धीरे-धीरे देश को खोखला कर देगी। इस देश में सबसे अधिक तबका गरीब है जिसके लिए एक वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मशक्कत है। यह समस्या दिन ब दिन गंभीर रूप धारण करती जा रही है जिसका कुछ निदान जिम्मेदारों को अवश्य निकलना चाहिए।
महंगाई की समस्या पर हिंदी कविता
POEM ON INFLATION IN HINDI
महंगाई ने चाक किया है,
जन-जीवन बर्बाद किया है,
आंखों देखा हाल है यह सब,
निर्मोहों ने राज किया है।
मांग रही है जनता सारी,
छुटकारा महंगाई से,
सत्ताओं के लोभी झूठे,
क्यों ऐसा आघात किया है।
राजतन्त्र बेजान हुआ है,
तन्त्र यहां बेहाल हुआ है,
महंगाई का दंश सहें क्यों,
हर जन अब बेजार हुआ है।
करो उजागर असफलता को,
सत्ता लोलुप आकाओं की,
नए दौर का भारत है यह,
प्रत्येक युवा बेगार हुआ है।
महंगाई की आंच बढ़े अब,
बढ़ने की भी जांच बढ़े अब,
करो कपाट बंद घर के सब,
सबक कपट को साँच कहें सब।
महलों में रहने वाले जब,
छप्पर वाले घर रौंद चलें,
सबको बतलादो क्या है हम,
मुफ्त ज्ञान जो बांच रहे अब।
'सचिन श्रीवास्तव'
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