भारतीय राजनीती 2014 के सन्दर्भ में हिंदी कविता
HINDI POEM ON INDIAN POLITICS 2014
एक पुरानी हिंदी कविता जिसे मैंने 2014 चुनाव के पहले लिखा था, प्रस्तुत कर रहा हूँ। वह एक वदलाव का चुनाव था, एक माहौल का चुनाव था, जो उस समय देश में देखने को मिल रहा था। तत्कालीन सत्ता से लोगों का मोहभंग हो रहा था। ऐसे में वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी एक विकल्प के तौर पर उभरे। लोगो ने उनपर भरोसा जताया और सत्ता के शीर्ष पर स्थापित कर दिया।
अब आज का प्रश्न है कि क्या वह उस भरोसे पर खरे उतरे या नहीं? यह मैं आप पर छोड़ता हूँ।
प्रस्तुत है 2014 राजनीती के सन्दर्भ में हिंदी कविता।
भारतीय राजनीती 2014 के सन्दर्भ में हिंदी कविता
HINDI POEM ON INDIAN POLITICS 2014
यह सारे ज़माने से कहना पड़ेगा,
है अब देश जागा समझना पड़ेगा।
थमीं डोर रावी की जोगी के हाथों,
स्वर्णिम समय है अब भारत का।
समझने लगो रूख इशारों में भाई,
यह अंबर, यह धरती बदलती हवा का।
हैं आका बहुत आये आकर गए हैं,
हिन्दुत्व ऋणी है एक बेटे नमों का।
बड़ी ही अजब है यह दुनियां हमारी,
युगों में है भागी पुरानी बीमारी।
कहीं ले न आना फिर से वही दिन,
चलने लगेगी घोटालों की आंधी।
उदय हो चूका है बुलंदी का सूरज,
अँधेरी घटायें है डर-डर के भागीं।
मेरा साथ पूरा है मेरे वतन को,
ख़तम कर दो सारी कमाई वो काली।
मगर एक शिकायत है मेरी भी सुनलें,
जिसे हर तरफ हर जगह में कहूंगा।
जनता के सेवक हो सेवक ही रहना,
इसके लिए कुछ भी सहता रहूंगा।
मेरी जंग केवल नकारों से होगी,
हमेशा धरा पर उतरता रहूंगा।
नहीं डर है कोई हुकूमत का मुझको,
निडर था, निडर हूँ, निडर ही रहूंगा।
सचिन "निडर"
0 Comments
Please comment, share and follow if you like the post.
Emoji