आँसुओं की वास्तविकता - हिंदी कविता

      

आँसुओं की वास्तविकता - हिंदी कविता

                         

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आँसुओं की वास्तविकता - हिंदी कविता

The reality of tears - A hindi poetry

Emotional tears and tears of joy


प्रणाम,

आँसुओं की वास्तविकता क्या होती है,  इस पर कुछ बात करते हैं। जबसे जीव की धरा पर कल्पना हुई है तब से ही आँसू भी उसके जीवन का एक अमिट अंग रहा है। जिसमें भी जीवन है वो वेदना एवं आनंद की अनुभूति अवश्य करता है। निःसंदेह कभी-कभी महसूस करना मुश्किल होता है कि सामने वाले के नेत्रों से बहता नीर पीड़ा है या प्रसन्नता। प्रत्येक जीव में आंसुओं का सागर बहता ही रहता है। और शायद कभी ऐसा क्षण आता ही है की चाह कर भी इस उफनते हुए सागर को अंदर ही रोक दिया जाता है। आँसू के कई रूप और कई रंग भी हो सकते हैं, अगर आप मानें तो।
            
आँसुओं की वास्तविकता केवल दुःख में ही नहीं बल्कि कई और रूप में भी सामने दिखाई पड़ती है। जिनकों प्रकृति ने बोलने की शक्ति प्रदान की है वह तो जता सकते हैं परन्तु तनिक विचारिये कि जिनके लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है उनका क्या? उनमें जीव-जंतु भी हो सकते हैं, एवं पर्यावरणिक भी। तात्पर्य यह कि जिनमें भी जीवन है। कभी निरीह पशुओं के बहते हुए आंसुओं को महसूस करियेगा। उनमें सिर्फ पीड़ा ही मिलेगी। अंतहीन पीड़ा। वेदना एवं लाचारी की अविरल बहती हुई कष्टदायक धारा। इंसान तो इन अश्रुओं का कारण बता सकता है, जता सकता है पर वाकशक्तिहीन पशु नहीं।
             
ख़ुशी के अश्क तो लहरों की तरह होते हैं जो कभी-कभी मचलते हुए अपनी परिधि लाँघ कर बाहर आ ही जाते हैं। इनमें वेदना, तड़प, दर्द का रंग नहीं होता। इनमें लाचारी, बेबसी, मायूसी का संगम नहीं होता। इनकों लेकर कोई सवाल भी नहीं होता और न ही यह छुपाये जाते हैं। यह बाँध में छोड़े गए पानी की तरह बह उठते हैं बस।
             
इनके उलट दुःख के नेत्रनींर स्वतः ध्यानाकर्षण करा जाते हैं। इनकी पहचान तो भावों और चक्षु नामक स्त्रोत से अश्रु के रूप में बहते हुए लावों से ही हो जाती है। इन अविरल बहते हुए शोलों में असीमित बेबसी, दर्द, एवं मजबूरियों का मेल होता है। उनमें अल्फाजों की आवश्यकता नहीं होती, होती है तो बस लाचारी, गम और अंतहीन सिसकियाँ।
             
आँसू अमीरी, गरीबी, उम्र, मजबूरियां, धर्म, सम्प्रदाय, रूप, रंग, हालात, जात-पात, कुछ नहीं देखते। कुछ भी नहीं। बस बहने का बहाना ढूंढ ही लेते हैं। जब तक जीवन है, आँसू भी साथ है, या तो सुख में या फिर दुःख में। कभी-कभी यह दूसरों के प्रति हमारी भावुकता एवं समर्पण भाव का बोध भी कराते हैं। और अनायास ही निकलने को आतुर हो जाते हैं, दूसरों की व्यथा में-प्रसन्नता में। निसंदेह आप दूसरों की प्रसन्नता में इन्हे शरीक करें या नहीं परन्तु दूसरों की विपदा में अवश्य सहभागी बनाएं।

"आखिर दूसरों के अश्रु पोछना ही श्रेयस्कर पुण्य है।"



"कुछ अश्रु शब्द के रूप में।"




आँखों में मचलते हैं,
बड़े शान से आँसू।
होते हैं जहां में 'निडर',
बड़े काम के आंसू।

छलकते हैं किसी की आँख से,
दुःख-दर्द के आँसू।
लुटाता है कोई शौक से,
ख़ुशी-हर्ष के आँसू।

छलकाता है इन्हे कोई,
मुनासिब पैमानों की तरह।
बहाता है कोई इन्हे,
मुजाहिद सैलाबों की तरह।

लपेटे हैं लोग दामन में,
कई रंग के आँसू।
मिलते हैं दिल-ए-पाक में,
हर रंग के आँसू।

है कौन सा यह मंजर,
मैं भी तो यह जानू।
अमीरी में भी है आँसू,
गरीबी में भी है आँसू।

                    सचिन 'निडर'

 



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4 Comments

  1. Kya bat Jabar jast Likha

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  2. लाजवाब लिखा है भाई आंसू वास्तव में समयनुसार अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है वो वेदना भी है खुशी भी है और अहसास भी है। सच में आपने आंसू की भावना की धारा प्रवाह वर्णन किया है।

    ReplyDelete

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