सामाजिक दूरी - कोविड-19

                                                                                                     

     

सामाजिक दूरी-कोविड-19

Please maintain social distancing






 





सामाजिक दूरी- कोविड-19

Please maintain social distancing




कोरोना त्रासदी में सामाजिक दूरी ही निर्णायक भूमिका निभाएगी यह निश्चित है।और हम सभी इस दायित्व का निर्वहन हेतु प्रतिबद्ध हैं। परन्तु देश में एक तबके का भूख, वेदना, व्याकुलता, समस्याओं एवं अव्यवस्थाओं से ये कष्टकारी दूरियां और अधिक बढ़ती जा रहीं हैं। एक तो महामारी दूसरे जहान भर की उलझनों का बोझ। भर्राये हुए गले से निकलने वाली भार युक्त पुकार stay at home के बुलंद होते हुए शोर के मध्य खो कर रह जाती हैं। अधर में फसें हुए लोगों की यही तो सजा मुक़र्रर की गयी है। हमसे बेहतर सामजिक दूरी का पालन शायद ही कोई कर रहा हो क्योकि हमने तो परिवार से भी दूरी बना रखी है। 

मुस्कराहट

  

शगल है यह मशहूर मेरा, 
लबों की मुस्कराहट नहीं खोते।
यह समय भी गुजर जायेगा
थोड़ा हॅसते थोड़ा रोते।
                                 सचिन।

वेदनाएं 


कोरोना काल में दूरियों की महत्ता जरा उन से पूछे जो अपने बच्चों, परिवार एवं घर से दूर हैं, तनहा, एकाकी। इस उम्मीद में कि कब वह अपने मन की व्यथा की धार अपनों के कांधों पर रखकर बहा सकेंगें। कब अपने बच्चो को सीने से लगा सकेंगे, कब बूढ़े हो चुके माँ-बाप की फिर से लाठी बन सकेंगें, और कब झोपडी ही सही, अपने घरों में एक दिन चैन की नींद सो सकेंगे। अजनबी शहरों में न कोई हाल पूछने वाला न समझने वाला। इस समय हर व्यक्ति जो अपनों से दूर है जलमाला की रीति से बहते हुए पथरीले मार्गों की परवाह न करते हुए सागर रुपी घर में एकाकार हो जाना चाहता है।

नाजुक दौर  


यह तो ज्ञात हुआ कि दूरियां सिर्फ प्रेम की नौका पर सवार दो यात्रियों के बीच में ही कष्टदायक नहीं होती हैं, बल्कि प्रत्येक भावुक ह्रदय के लिए फांसले निहायत ही पीड़ादायक सिद्ध होते हैं। स्वजनों से दूरियों की ये सजा अंतहीन समय के लिए जारी है। क्या किया जाये परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हैं। विवशताएँ अवश्य  हैं परन्तु विवशताएँ समस्याओं पर हावी हो रहीं हैं। परन्तु गौर करिये कि लाखों लोगों की आज यही स्थिति है। आप और हम अकेले नहीं हैं।  

प्रकृति 



दूरियां तो प्रकृति में भी हैं, धरा से अम्बर की, चाँद से सितारों की, अन्धकार से प्रकाश की, जड़ों से तने की, जल से थल की, भक्त से भगवन की, और प्रेम से विरह की। इनमें दूरियां तो हैं पर फिर भी एक दुसरे के बिना अधूरे। जितनी अधिक दूरी, उतना अधिक प्रेम। आज ऐसा अनुभव होता है की इन बंदिशों का प्रकृति जश्न मना रहीं है।पंछियों की चहचहाट हो, नदियों के कलकल एवं स्वच्छ नीर हो, या नीला अंबर सभी स्वतंत्रता का अनुभव कर रहें हैं।
  

प्रहरी 


आज समझ आता है की सीमाओं के सजग प्रहरी अपनों से दूर कैसे रहते हैं। निश्चय ही वो देशप्रेम का जज्बा होता है, वतन पर मर-मिटने के जूनून का जोश होता है। कोरोना के इस रण में आपकी ये दूरियां भी कुछ यही जज्बा दिखातीं हैं। इन फासलों को मिटाने का जूनून लिए कुछ कर्मयोद्धा पथ में ही शहीद हो गए। फांसले  समाप्ति का जूनून घातक भी हो सकता है, ज्ञात नहीं था। 
तो आईये हम भी उन्ही प्रहरी की भांति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें एवं जब तक सब सुचारू रूप से नहीं हो जाता तब तक दूरी बनायें ही रखें। यह विश्वास रखिये की हर रात्रि की भोर अवश्य होती है। 

धैर्य रखे, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें एवं जहां हैं वहीं रहें। 



दूरियां फिर से मिटा दे 


ब्रम्ह का रहना कहाँ हैं, 
कैसा है वह कौन जाने।
अब समय भी पूछता है,
कौन हैं रे तू अभागे।
दूरियो को दिल में रखिये, 
हौसलों की डोर थामें,
ब्रम्ह का रहना कहाँ हैं, 
कैसा है वह कौन जाने।

वाष्प संचित हो चुका है,
बादलों के बीच आके.
मेघ बरसेंगे धरा पर,
नयन में फिर नीर जागे।
स्वजनों से आलिंगनों को,
मन मेरा मिलने को भागे।
ब्रम्ह का रहना कहाँ हैं, 
कैसा है वह कौन जाने।

पाँव में छाले पड़ें है,
उम्मीदों के हैं पुंज जागे।
लो चले हम छोड़ गलियां,
जा रहे बस घर को भागे।
हो खड़े खिड़की पे कब तक,
माँ मेरे रस्ते निहारे।
ब्रम्ह का रहना कहाँ हैं, 
कैसा है वह कौन जाने।

अपनों के आंसू थे जिसमें,
वो निवाले छोड़ आये।
बेबसी लाचारियों के,
सारे बंधन तोड़ भागे।
हम स्वयं तपते रहे पर, 
कौन पूछे कौन जांचे। 
ब्रम्ह का रहना कहाँ हैं, 
कैसा है वह कौन जाने।

कोई कागा गा रहा फिर,
ख्वाव, माया छोड़ सारे।
मेघ तू सन्देश कर दे, 
दर्द मन के फिर सुना दे।
कोई तो सुनले ये क्रंदन, 
दूरियां फिर से मिटा दे।
ब्रम्ह का रहना कहाँ हैं, 
कैसा है वह कौन जाने।
                  सचिन 'निडर'


(Please maintain social distancing and wear a mask)

                 

















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