कोविड-19 एवं संवेदनहीन भारतीय राजनीति
कोविड-19 एवं संवेदनहीन भारतीय राजनीति
Stop politics, save life
Stop politics on covid-19
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हिंदी कविता-
घोलकर इन फ़िज़ाओं में इतना जहर।
सांस लेनी है कैसे बता दीजिए।
पूछता हूँ सुलगते से कुछ प्रश्न मैं।
हो अगर कोई उत्तर तो ला दीजिये।
इतने खिलवाड़ जो सब प्रकृति संग किये।
इन गुनाहों की कोई सजा दीजिये।
कोई इंसान हो या कि हो एक खुदा।
आदमी की भी कीमत बता दीजिए।
सुन रहे हो न कोई रुदन रूह की।
जिस्म से जान को भी हटा दीजिये।
जानकर कांप जाओगे हर राज अब।
राज बांकी हो कुछ तो दबा लीजिये।
उलझे हैं तार जीवन के आपस में सब।
हो इजाजत तो आकर छुड़ा दीजिये।
अब हवा भी मयस्सर कहाँ हो रही,
हमको जीने की चाहे सजा दीजिये।
हैं बहुत ऋण तुम्हारे मेरी सांस पर,
न उतारें तो आकर जता दीजिये।
क्यों हैं क्रंदन मचा आज हर राह पर।
जान कोई बचे तो बचा दीजिये।
आप मगरूर हैं आप मशरूफ हैं।
हो फिकर कोई तो फिर जता दीजिये।
हर तरफ शोर है आप खामोश हैं।
जल रहीं हैं चिताएं बचा लीजिये।
या तो करिये रहम या तो करिये शर्म।
फेरिये मत निगाहें बता दीजिए।
हवा भी हुई गुल दवा भी हुई गुल।
हों किसी के भी दर्शन करा दीजिये।
है नमन कर्मवीरों को जो हैं डटे।
कुछ खबर उनकी भी तो लगा लीजिये।
जिंदगी पर बनी जिंदगी से ठनी,
हो अगर कोई चाहत बता दीजिए।
है पराकाष्ठा दर्द के दौर की,
हो सके जिंदगी कुछ बचा लीजिये।
जिंदा वोटों की साहब तो छोड़ों अभी।
कब्र से भी मुहर कुछ लगा लीजिये।
सचिन 'निडर'
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