भारत में कोरोना महामारी की त्रासदी एवं अव्यवस्थाएं
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कोरोना महामारी एवं अव्यवस्थाएं
समूचे विश्व में एक ऐसी माहमारी से हाहाकार मचा हुआ है जिसका अभी तक कोई परिपूर्ण इलाज नहीं मिल पाया है। पर जिस तरह से कोरोना वायरस ने भारत में उथल-पुथल मचाई है वैसी और कहीं नहीं। इस महामारी के बीच हम सबने अव्यवस्थाओं का तांडव भी देखा है, देख रहें भी हैं। कोरोना वायरस से तो लोग परेशान थे ही, स्वास्थ्य सम्बन्धित अव्यवस्थाओं ने लोगों की जानों के साथ और खिलवाड़ किया। दवाओं, ऑक्सिजन, अस्पतालों में बेड आदि की कमीं से ज्यादातर लोगों ने अपनों को खोया है। यहां तक कि अंतिम संस्कार तक के लिए भी लाइनें देखने को मिल रहीं हैं। इस से बड़ा दुर्भाग्य क्या ही हो सकता है।
तनिक सोचिये कि आपकी हमारी आंखों के सामने ही अस्पतालों में बेड न मिलने के चलते, ऑक्सीजन न मिलने के चलते, दवाइयां आदि न मिलने के चलते हमारे अपने लोग तड़प-तडप कर काल के गाल में समा रहें है। इसके बाद अंतिम संस्कारों के लिए भी जगह नहीं है। वहां भी अफरा-तफरी का माहौल है। और इन सबके बाद भी हमें राजनैतिक गतिविधियां ही दिखाई दे रही है बस। देश के जिम्मेदारों से निवेदन है कि थोड़ी सी तो संवेदना रखिये। यदि ऑक्सीज़न की कमीं से कोई जिंदगी की जंग हारता है तो यह कोरोना से नहीं बल्कि अव्यवस्थाओं के द्वारा हुई मृत्यु हैं जिसकी जबाबदेही यकीनन जिम्मेदारों की ही है। इन अव्यवस्थाओं का अंत तुरंत ही करने की कोशिश होनी चाहिए।
कोरोना महामारी और चुनाव
कोरोना महामारी में चुनाव जैसे कृत्य भारत में ही सम्भव है। देश के कुछ हिस्सों में चुनाव भी थे। वो अनवरत चलते रहे। उनपर किसी भी कोरोना ने असर नहीं किया। रैलियां हुई, भीड़ जुटी, भाषण हुए, आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। मतलब जैसा कि माहमारी से पहले चल रहा था ठीक वैसा। न चुनाव आयोग को परवाह न जिम्मेदारों को। आपको पता होगा शायद कि इन चुनावों की वजह से भी कई प्रत्यासी, कई आम लोग, कई कर्मी जिनकी चुनावों में ड्यूटी लगाई गई थी आदि भी काल के गाल में समा गए। नाम आया कोरोना का किंतु वह बेचारे तो भेट चढ़े, सिस्टम के, व्यवस्था के।
राजनीति अपने पूरे शवाब पर है। चाहे कोई भी चुनाव हों, राजनेता नहीं रुके। न रैली करने से, न प्रचार करने से, न भीड़ जुटाने से, न एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने से, न टेढ़े-मेढ़े बयान देने से, न लोगों को उकसाने में, न दंगे कराने में, और न ही राजनैतिक रोटियां सेंकने में। जैसे लोगों के मातमों से उन्होंने आंख-कान बन्द कर लिए हो। जिम्मेदारों का सारा ध्यान बस चुनावों एवं चुनावों में विजय पर ही केंद्रित था वो भी तब जब जनता उन्ही के द्वारा फैलाई अव्यवस्था एवं कोरोना दोनों से खुद ही लड़ रही थी। कई बार चेताने के वाबजूद न तो चुनावों पर रोक लग सकी और न ही मतगणना पर। जैसे यदि चुनावों में विजय प्राप्त कर ही लेगें तो जश्न क्या लोगों के आंसुओं के साथ उनके शवों पर मनाया जाएगा।
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तैयारियां
राजनीतिक जिम्मेदारों का इस तरह से जनता से मुंह मोड़ना वह भी तब जब भारत देश टाइम बम पर बैठा हो, निसन्देह ही असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा ही कही जा सकती है। देश की अदालतों ने भी सत्ताओं को कई बार टोका है, जो कि सर्वविदित है। प्रत्येक दावा स्वप्न है एवं हकीकत भयावह। पिछले एक वर्ष में जिम्मेदारों ने बिल्कुल भी आने वाले माहमारी के इस विकराल रूप की कोई तैयारी नहीं की। ऐसा कैसे हो सकता है कि देश के इतने काबिल डॉक्टर्स, वैज्ञानिक आदि को इस विकराल रूप के बारे में बिल्कुल भी अंदाजा न हो और उन्होंने इसके लिए चेताया न हो। यह मानना थोड़ा सा मुश्किल लगता है।
चलिए एक बार के लिए मान लेते है कि किसी को बिल्कुल भी कोई अंदाजा नहीं हुआ वर्तमान परिस्थिति के बारे में। तो यह तो वैश्विक माहमारी है। समूचे विश्व में इस स्थिति का आंकलन किसी ने नहीं किया होगा क्या यह भी माना जा सकता है। तैयारियां क्या सिर्फ चुनाव जीतने की ही हो पायीं क्या? सच्चाई तो यह है कि बस बहानेबाजी, आत्ममुग्धता, झूठे आंकड़े, आदि ने मिलकर आम आदमी की जान दांव पर रख दी।स्थिति कितनी भयावह है, आप सब देख ही रहें होंगे। आज राजनीति ने मिलकर हमारे अपनों की मौतों तक को महज एक आंकड़ा बनाकर रख दिया।
जानलेवा आयोजन
देश में आम जनता कोरोना से अपनों को जिंदगी से हारता हुआ देखती रही परन्तु कई सारे राजनैतिक, धार्मिक, व्यापारिक आयोजन इन दिनों में भी जारी रहीं। जिनके बारे में आप सभी को ज्ञात ही है। चाहे वह आई पी एल हो, कुम्भ हो, चुनाव हो, रैलियां हो, मतगणना हो, या फिर इनके जैसे ही कई सारे जानलेवा कार्यक्रम। लोगों की जानों से ज्यादा ऐसे कार्यक्रम शायद अधिक आवश्यक रहे होंगें। क्रिकेट आयोग की नींद से आँख तब खुली जब खिलाडी एवं क्रिकेट कर्मी कोरोना से ग्रसित होने लगे। मजबूरी वश आगे के लिए मैच रद्द करने पड़े। सवाल यहाँ भी उठता है कि क्या आयोग कोरोना से संक्रमित होने का इंतजार करता रहा। जबकि होना यह चाहिए था कि जितना धन आप आई पी एल में खर्च कर रहे थे उतने में आयोग को इस समय लोगो की मदद करनी चाहिए थी। जो की आज के समय की सर्वाधिक मांग। है। इस से आप न जाने कितने लोगों की जानें बचा सकते थे। भारत में ऐसे सभी जानलेवा आयोजनों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगनी चाहिए।
वैक्सीन
कालाबाजारी
इसके अलावा कालाबाज़ारी भी अपने चरम पर है। जिसके लिए शब्द कम पड़ जाते है। संजीवनी साबित हुई ऑक्सीजन तक कि कालाबाजारी। दवाओं की कालाबाजारी, हर उस चीज की कालाबाजारी जो लोगों की जान बचाने में काम आये। ऐसे लोगो को सोचना चाहिए कि यह केवल जीवित रहने का युद्ध है, जीवित रहोगे तो आगे लाभ कमा लेना पर कृपया अभी ऐसा मत कीजिये। और हमें भी सजग रहना होगा। ऐसे लोग यदि संज्ञान में आये तो तुरंत शिकायत कीजिये। कालाबाजारी करने वाले लोग समाजिक दुश्मन से कम नहीं।
कोरोना योद्धा
अपील
आपसे उम्मीद एवं अपील है कि अपने लिए, अपनों के लिए कोरोना गाइडलाइंस का पालन अवश्य करें।सरकारों/व्यवस्थाओं के लिए आप और हम आकड़ों से अधिक कुछ भी नहीं। इसलिए अपना और अपनों का ध्यान रखिये। मास्क पहनिए, सामाजिक दूरी रखिये एवं हाथ धोते रहिये। कम से कम बाहर निकलें। और घबराएं बिलकुल भी नहीं। स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।
सचिन 'निडर'
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